ग्राम प्रधानों के लिए प्राकृतिक खेती पर प्रशिक्षण

प्राकृतिक खेती एक रसायन मुक्त अर्थात पारंपरिक खेती पद्धति है। इसे कृषि पारिस्थितिकी आधारित विविध कृषि प्रणाली माना जाता है जो फसलों, पेड़ों और पशुधन को कार्यात्मक जैव विविधता के साथ एकीकृत करती है। भारत में, प्राकृतिक खेती को केंद्र प्रायोजित योजना- परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम (बीपीकेपी) के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है। बीपीकेपी का उद्देश्य पारंपरिक स्वदेशी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना है जो बाहर से खरीदे जाने वाले इनपुट को कम करता है। यह काफी हद तक ऑन-फार्म बायोमास रीसाइक्लिंग पर आधारित है, जिसमें बायोमास मल्चिंग, ऑन-फार्म गाय के गोबर-मूत्र के उपयोग फॉर्मूलेशन है; आवधिक मिट्टी वातन और सभी सिंथेटिक रासायनिक इनपुट का बहिष्कार जैसे प्रमुख कार्यों पर आधारित है। बीपीकेपी कार्यक्रम आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और झारखंड राज्यों में अपनाया गया है। कई अध्ययनों ने उत्पादन में वृद्धि, स्थिरता, पानी के उपयोग की बचत, मिट्टी के स्वास्थ्य और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के संदर्भ में प्राकृतिक खेती-बीपीकेपी की प्रभावशीलता की सूचना दी है। इसे रोजगार बढ़ाने और ग्रामीण विकास की गुंजाइश के साथ एक लागत प्रभावी कृषि पद्धति माना जाता है।

प्राकृतिक खेती के महत्व को ध्यान में रखते हुए, प्राकृतिक खेती के महत्व पर माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के संबोधन के क्रम में, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा मैनेज को 16 दिसंबर 2021 को गुजरात में शून्य-बजट प्राकृतिक खेती पर संपन्‍न राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के पश्‍चात बीपीकेपी के नोडल संगठन और ज्ञान भंडार के रूप में नामित किया गया है। इसे ध्यान में रखते हुए, मैनेज को प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर परामर्शी बैठकें, क्षमता निर्माण कार्यक्रम और मास्टर प्रशिक्षकों के विकास, समुदाय की सर्वोत्तम प्रथाओं, सफलता की कहानियों और वैज्ञानिक रूप से सिद्ध प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं का संग्रह करने का काम सौंपा गया है।